Welcome to Bhartiya Maulik Adhikar Association
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''मिशन पर्यावरण संरक्षण'
जय भारत
Bhartiya Maulik Adhikar Association
National Fundamental Rights Organization
कार्य क्षेत्र - सम्पूर्ण भारत (INDIA)

About Us

''भारतीय मौलिक अधिकार एसोसिएश'' एक राष्ट्रीय Fundamental Rights (HUMAN RIGHT) N.G.O. है जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियमों के अंतर्गत मानवहित, समाज हित, और देश हित को ध्यान में मूलतः इस विचार को ध्यान में रखकर की गयी है कि मनुष्यों / नागरिकों को मौलिक मानव धर्म तथा संवैधानिक नियमों से परिचित कराना क्योंकि " मनुष्य प्रकृति का वह प्राणी है जिसके लिए सामाजिक होकर रहना आधारभूत लक्षण है तथा तथा समाज एक संगठनात्मक प्रक्रिया के तहत निर्मित होता है जबकि संगठित होना परमात्मिक लक्षण है I आत्मज्ञानी एवं बुद्धिजीवी मनीषियों ने व्यवस्थित समाज के लिए निर्माण तथा मनुष्य विकास हेतु कुछ मौलिक नियम बनाये जो धर्म और संविधान कहलाये |
धर्म से अर्थ मनुष्य का आत्मिक स्तर पर सम्पूर्ण प्रकृति के साथ एकात्म होकर या संगठित होकर पर्मात्मिक होने से है जिसे योग भी कहते हैं यही मनुष्य के विकास का वास्तविक सिद्धांत भी है I संविधान से अर्थ सामाजिक रूप से संगठित मनुष्य को जीवन यापन करने हेतु आवश्यक वैधानिक नियम जो मूलतः मानव के विकास को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं उनका संगठित स्वरुप संविधान कहलाता है |
मनुष्य विचारवान एवं अतिसंवेदनशील प्राणी है तथा उसमे विकाश कि अनंत सम्भावनाये निहित होती हैं और यही सम्भावनाये मनुष्य में अधिकार जाग्रत करती हैं जो मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार होते हैं और यही प्राकृतिक अधिकार मनुष्य के मानव अधिकार कहलाते हैं तथा मानव अधिकारों का संवैधानिक रूप मौलिक अधिकार कहलाता है और इन्ही मानव मौलिक अधिकारों को विकसित होने या बचने हेतु धर्म और संविधान बनाये गए |
हमारा उद्देश्य सम्पूर्ण मानव जाति को वास्तविक मानव धर्म से परिचत कराना तथा वैचारिक क्रांति के माध्यम से विचारवान बनाते हुए संवैधानिक विचारधारा से जोड़ना है |
मानव अधिकार संरक्षण एक धार्मिक कार्य है, जिसे एसोसिएशन के धार्मिक विचारधारा एवं प्रबुद्ध वर्ग एवं पदाधिकारियों द्वारा जन जागरण अभियान के तहत अशिक्षित समाज एवं सम्पूर्ण समाज को जो कुरीतियों वस् दबे हुए है उन्हें उनके अधिकारों अथवा संवैधानिक अधिकारों अर्थात मानव - मौलिक अधिकारों से परिचित कराना या उनके प्रति जागरूक करना ही प्रमुख उद्देश्य है I समाज के उत्थान के लिए सत्य , धर्म , और इमानदारी से कार्य करने वाले संगठन आवश्यक भूमिका निभाते है , या यह कह सकते है की संगठनो की स्थापना इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर की जाती है |
सामाजिक संगठन समाज की रीढ़ होते है और जो भी संगठन बनते है या बनाये जाते है उनका उद्देश्य सिर्फ जनता को धार्मिक , नैतिक , शैक्षिक आदि आधारभूत स्तर पर जागरूक करना , सरकार की योजनाओ से परिचित कराना, असहायो और पीडितो को न्याय दिलाना, तथा जनता की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार से नए नियमो तथा सुविधाओं की मांग करना आदि |
समाज में फ़ैल रहे भ्रष्ट आचार और विचार जिनसे हमारी अगली पीढ़ी जो की हमसे एक स्वर्णिम सदाचारी समाज का सपना देख रही या उसे देना हमारी धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी है .... लडखडाती नजर आ रही है I एक सच्ची राष्ट्र भक्ति , वास्तविक धर्म ( सत्य और प्रेम ) , मानवता , जन्म , शरीर , जीवन और म्रत्यु को सार्थक करने की प्रेरणा ने ...... निरंतर मानव हित जो कि धर्म है क्योकि मानव परमात्मा की विशेष रचना है परमात्मा की राह पर चलने के लिए सेवा भाव आवश्यक ही है, और इस संसार में कोई भी कार्य बिना माध्यम के नहीं किया जा सकता , अतः परमात्मा की कृपा से परमार्थ और मानव सेवा हेतु मौलिक अधिकार एसोसिएशन की स्थापना हुई या की गयी |
मंजिल मिले न मिले हमें इसका गम नहीं , मंजिल की राह पर हमेशा मेरा कारवां होगा मानव अधिकारों का संक्षिप्त विवरण
मानव अधिकारों से अभिप्राय "मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है.अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें नागरिक और राजनीतिक अधिकारों,नागरिक और राजनैतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार I .
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानव अधिकारहैं जो कभी छीने नहीं जा सकते; मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार की ।
इस घोषणा से राष्ट्रों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए अग्रसर हुए। राज्यों ने उन्हें अपनी विधि में प्रवर्तनीय अधिकार का दर्जा दिया।
10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया । इस ऐतिहासिक कार्य के बाद ही सभा ने सभी सदस्य देशों से पुनरावेदन किया कि वे इस घोषणा का प्रचार करें और देशों अथवा प्रदेशों की राजनैतिक स्थिति पर आधारित भेदभाव का विचार किए बिना, विशेषतः विद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थाओं में, इसके प्रचार, प्रदर्शन, पठन और व्याख्या का प्रबंध करें ।
मानव अधिकारकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं बनी बल्कि समय समय पर मानवाधिकारों में परिवर्तन होता रहा जबकि भारतीय मौलिक अधिकार एसोसिएशन ने सम्पूर्ण लगभग प्राप्त से अध्ययन के पश्चात एक निश्चित परिभाषा देने का प्रयाश किया है ----- मानव अधिकार की परिभाषा ''मानव अधिकार मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार हैं जो सम्पूर्ण संसार के मनुष्यों के समान एवं मानव जीवन , मानव के सम्पूर्ण विकास हेतु मनुष्यता की आधारशिला पर तथा मनुष्य के स्वयं के वैचारिक स्तर पर निर्मित होते हैं I (संस्थापक) ‘’मनुष्य योनि में जन्म लेते ही मनुष्य को स्वतंत्र रूप से जीवनयापन के लिए जो आत्मिक, बुद्धिगत, वैचारिक अधिकार स्वतः प्राप्त होते है उन्हें ही मानव अधिकार कहते है तथा मानव अधिकारों का संवैधानिक रूप मौलिक अर्थात मूल भूत अधिकार कहलाता है’’ (संस्थापक) "मनुष्य को जन्म लेने हेतु व जन्म के पश्चात स्वयं के सम्पूर्ण विकास के लिए जिन प्राकृतिक अधिकारों की आवश्यकता होती है उन्हें मानव अधिकार कहते हैं " (संस्थापक) भारतीय संविधान में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित मानव अधिकारों को दो भागो में शामिल किया गया है |
१. मौलिक अधिकारों के रूप में
२. राज्यों के नीति निर्देशक तत्वों के रूप में जिसमे मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं :-
मौलिक अधिकार
संविधान के भाग 3 में सन्निहित अनुच्‍छेद 12 से 35 मौलिक अधिकारों के संबंध में है। ये अधिकार हैं:- १. समानता का अधिकार
२. स्‍वतंत्रता का अधिकार
३. शोषण के विरुद्ध अधिकार
४. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
५. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
६. संवैधानिक उपचारों का अधिकार